oxygen cylinder portable
ऑक्सीजन सिलेंडर (oxygen cylinder) क्या है ऑक्सीजन सिलेंडर कितने प्रकार का होता है एक ऑक्सीजन सिलेंडर कितने दिन तक चल सकता है?
सबसे पहले ऑक्सीजन ट्रंक के बारे मे जानकारी दी जा रही है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कारण देशभर में कोहराम मचा हुआ है। ऑक्सीजन की कमी के कारण से रोज हजारों मरीज दम तोड़ रहे हैं। अस्पतालों में ऑक्सीजन टैंकरों के जरिए प्राणवायु सप्लाई की जा रही है। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि देश में अब तक ऑक्सीजन सप्लाई महज 500 टैंकरों के ही भरोसे पर थी।
जैसे ही अस्पतालों में स्थिति अधिक बिगड़ी तभी नाइट्रोजन (Nitrogen) और आर्गन (Argon) गैस के टैंकरों को ऑक्सीजन टैंकरों (Oxygen tankers) में तब्दील किया गया। ताबड़तोड चालकों को इन टैंकर को चलाने का विशेष रूप से प्रशिक्षण दिया गया ताकि ऑक्सीजन की कमी के संकट को दूर किया जा सके।
Aloe vera ke fayde hindi – एलोवेरा के फायदे
Pani Peene Ke Fayde पानी पीने के फायदे
माइनस 150 डिग्री पर लिक्विड ऑक्सीजन (Liquid oxygen) लेकर जाता है टैंकर ट्रांसपोर्ट क्षेत्र की सबसे बड़ी यूनियन ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट (All India Motor Transport) कांग्रेस के महासचिव नवीन कुमार गुप्ता ने अमर उजाला को बताया कि देश में बढ़ती ऑक्सीजन की मांग को देखते हुए आर्गन (Argon) और नाइट्रोजन (Nitrogen) गैस के टैंकरों को ऑक्सीजन टैंकरों में बदला गया है ताकि ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी के इस संकट को कम किया जा सके।
ऐसे में अब करीब एक हजार ऑक्सीजन(Oxygen tankers) टैंकर ही सड़कों पर दौड़ रहे हैं। उनका यह कहना है कि एक टैंकर को चलाने में औसतन 74 रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आ रहा है।
गुप्ता बताते हैं कि ऑक्सीजन की सप्लाई करने वाले टैंकर बहुत ही ज्यादा महंगे होते हैं। इन्हें बनाने में करीब – करीब 72 लाख रुपये की लागत आती है। ये क्रायोजेनिक टैंकर (Cryogenic tankers) माइनस 150 डिग्री पर लिक्विड ऑक्सीजन (liquid oxygen) लेकर जाते हैं।
देश में कुछ चुनिंदा निर्माता ही इन टैंकरों को डिमांड के आधार पर ही बनाते हैं। ऑक्सीजन टैंकर को बनाने में तकरीबन आठ महीने का समय लगता है ।
बाकि ट्रांसपोर्ट विभाग (Transport Department) की प्रक्रिया से गुजरने में कम से कम दो माह का समय लगता है । ऐसे में एक टैंकर को सड़क पर आने में 10 से 12 महीने का समय तक लग जाता हैं। इन टैंकर को चलाने वाले ड्राइवरों को भी विशेष तरह की ट्रेनिंग दी जाती है।
उन्हें यह आवश्यक रूप से पता होना चाहिए कि किस प्रेशर पर ऑक्सीजन को ले जाना है।
ड्राइवरों को 15 दिन का विशेष प्रशिक्षण और उन्होंने आगे बताया कि ऑक्सीजन मैन्युफैक्चरर (Oxygen manufacturer) इस लिक्विड ऑक्सीजन (liquid oxygen) को बड़े-बड़े टैंकरों में स्टोर करते हैं। जहां से बहुत ही ठंडे रहने वाले क्रायोजेनिक टैंकरों (Cryogenic tankers) से डिस्ट्रीब्यूटर तक भेजते हैं।
डिस्ट्रीब्यूटर (distributor) इसका प्रेशर कम करके गैस के रूप में अलग-अलग तरह के सिलेंडरों में इसे भर देते हैं। यही सिलेंडर सीधे अस्पतालों में या इससे छोटे सप्लायरों तक पहुंचाए जाते हैं। वह बताते हैं कि एक ऑक्सीजन टैंकर ( oxygen tanker) औसतन 45 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलता है।
इसी तरह एक टैंकर जब ऑक्सीजन लेकर चलता है तो तकरीबन 34 रुपये प्रति किलोमीटर का खर्चा आता है। उसी तरह जब टैंकर खाली लौटता है तो ये खर्च बढ़कर औसतन 70 से 74 रुपये प्रति किलोमीटर हो जाता है, ऐसा इसकी रनिंग कॉ़स्ट (Running cost) बढ़ने से होता है।
एआईएमटीसी (AIMTC) के वेस्ट जोन के उपाध्यक्ष विजय कालरा ने अमर उजाला को बताया, पहले करीब 500 टैंकर थे जो ऑक्सीजन की आपूर्ति करते थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ा दी गई हैं। अब कम से कम एक हजार से ज्यादा ट्रक चलाए जा रहे हैं।
इसमें मेडिकल नाइट्रोजन टैंकर, ट्रकों को भी ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए लगाया गया है। ये टैंकर औरों की तुलना में बिल्कुल अलग तरह के होते है। ऑक्सीजन टैंकर ट्रक ड्राइवरों को 15 दिन का विशेष तौर पर प्रशिक्षण दिया जाता है, इसके बाद ही वे इन ट्रकों को चला सकते हैं।
सामान्य ट्रकों के मुकाबले इन ट्रक में आग लगने की आशंका बहुत ज्यादा होती है, इसलिए ये सभी ट्रक धीमी गति से भी चलते हैं।
उन्होंने बताया कि देश में कई जगह ऑक्सीजन (Oxygen) के प्लांट हैं। राउरकेला (Rourkela) भिलाई (Bhilai), बोकारो (Bokaro), विशाखापट्टनम (Visakhapatnam), जामनगर (Jamnagar) से ऑक्सीजन सप्लाई की जा रही है। इन जगह से उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र मे सप्लाई हो रही है।
ऑक्सीजन टैंकरों को चलने में करीब 65 फीसदी डीजल की लागत होती है। वहीं 15 फीसदी सामान्य टोल सहित अन्य खर्चे भी होते हैं।
ऑक्सीजन सिलेंडर के विषय में बताते है अब।
कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के कारण प्रत्येक राज्य में कोहराम मचा है। जो लोग कोरोना से संक्रमित हैं और जिनका ऑक्सीजन (Oxygen) लेवल 90 के नीचे चला गया है उन्हें तुरंत ऑक्सीजन सिलेंडर (oxygen cylinder) की जरूरत पड़ती है।
जो लोग होम क्वॉरंटीन(Home Quarantine) हैं उनकी भी हालत खराब होने पर उन्हें भी ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ती है। अब लोग घर पर ही पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर (Portable oxygen cylinder) रख रहे हैं।
ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत कब
कोरोना से पीड़ित हुए मरीज का जब ऑक्सीजन लेवल 90 के नीचे पहुंच जाता है तब उसे क्रिटिकल स्टेज (Critical stage) में माना जाता है। ऐसे में मरीज को तुरंत ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता होती है।
केवल तीन मिनट तक की ऑक्सीजन रहती है दिमाग में
विशेषज्ञों के अनुसार, वेंटीलेटर पर पहुंचे मरीज के दिमाग में तीन मिनट तक की ऑक्सीजन रहती है।
अगर वेंटीलेटर से मरीज को 100 फीसदी ऑक्सीजन दे दी जाए तो मरीज का दिमाग सात से आठ मिनट तक बिना ऑक्सीजन के भी रह सकता है। इसके बाद अगर दिमाग को ऑक्सीजन न मिले तो मरीज की तुरंत मृत्यु हो सकती है।
पोर्टेबल ऑक्सीजन सिंलेडर की कीमत कितनी oxygen cylinder portable
पोर्टेबल ऑक्सीजन (Portable oxygen) छोटे आकार का सिलेंडर होता है। इसकी कीमत 5000 रुपए तक होती है।
सिलेंडर के साथ वॉल्व (Valve), रेगुलेटर (रेग्युलेटर) और मेडिकल ऑक्सीजन से भरा मास्क होता है। सिलेंडरों की कीमत भी पंप काउंट और वॉल्यूम पर ही निर्भर करती है।
कितना चलता है पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर oxygen cylinder portable
2.7 किग्रा-2 घंटा 4 मिनट
3.4 किग्रा-3 घंटा 27 मिनट
4.9 किग्रा-5 घंटा 41 मिनट
13.5 किग्रा-14 घंटे 21 मिनट
कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन
ऑक्सीजन सिलेंडर में भरी जाने वाली गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रॉसेस (Cryogenic distillation process) से बनती है। इस प्रॉसेस में हवा को फिल्टर किया जाता है, ताकि धूल-मिट्टी को हटाया जा सके। यानी हवा में मौजूद विभिन्न गैसों को अलग-अलग करके ऑक्सीजन निकालते हैं।
फिर कई चरणों में हवा को कंप्रेस यानी भारी दबाव डाला जाता है। फिर कंप्रेस हवा को मॉलीक्यूलर छलनी एडजॉर्बर (Molecular Sieve Adjourn) से ट्रीट करते हैं। इससे हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड (carbon dioxide) और हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbons) अलग हो जाते हैं।
…और फिर भर लिया जाता सिलेंडर में
इस पूरी प्रक्रिया से तैयार होकर ऑक्सीजन को सिलेंडरों में भरकर कंपनियां मार्केट में उतारती हैं। इसका उपयोग सांस के मरीजों के लिए या फिर जिन्हें हार्ट अटैक (heart attack) व ब्रेन हैब्रेज (Brain Hemorrhage) जैसी समस्या हुई है या कोई बड़ी दुर्घटना के चपेट में आ गए हैं या फिर ऑपरेशन होते समय किया जाता है।
इसके अलावा स्टील, पेट्रोलियम आदि उद्योगों में भी इसकी बहुत अधिक आवश्यकता पड़ती है।
भेंट किये ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर (Oxygen Concentrators)
मेडिकल ऑक्सीजन की अत्यधिक कमी को फौरी तौर पर पूरा करने के लिए अस्थायी तौर पर ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर मशीनें लगायी जा सकती है।
यह मशीनें कम से कम 45 सें 60 हजार रुपए के अंतर्गत आती है। हवा से यह जरूरत भर के ऑक्सीजन बना लेती है। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर भेंट करना चाहिए।
ऑक्सीजन की कितनी उत्पादन क्षमता
भारत में 7000 मीट्रिक टन से अधिक मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। जबकि, 12 अप्रैल को भारत में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत 3842 मीट्रिक टन थी।
Leave a Reply