ऐसे कौन से पौधे चौबीसों घंटे ऑक्सीजन (Oxygen) देते हैं? PHOTOSYNTHESIS MEANING

छोटा सा उत्तर है, कोई भी नहीं। प्रकाश-संश्लेषण Photosynthesis) की इस प्रक्रिया में पौधे हवा से कार्बनडाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं, इसके पानी से संयोग से शर्कराओं (sugars) तथा ऑक्सीजन (Oxygen) का निर्माण करते हैं।

पादपों के लिए भी शर्करा की मात्रा अधिक होने पर उनका उपापचय (metabolism) आवश्यक है, अतः जब इनकी मात्रा अधिक होती है तो प्रकाश-संश्लेषण की दक्षता कम होती जाती है, तथा सामान्य उपापचय (metabolism) प्रक्रिया से पादप ऑक्सीजन ग्रहण कर इन शर्कराओं से उर्जा तथा कार्बनडाइऑक्साइड
(Carbon dioxide) बनाते हैं।

ऐसा क्यों? इस आलेख में विस्तार दिया गया है

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डच जीववैज्ञानिक और रसायनशास्त्री यान इंगेनहौश (Jan Ingenhousz) ने १७९९ में ही यह प्रमाणित किया था कि सभी पादपों के हरे भागों से ही ऑक्सीजन (Oxygen) बनती है, और यह तभी बन पाती है जब पौधों पर प्रकाश पूरी तरह से आ पा रहा हो।

इस प्रयोग में एक जलती हुई मोमबत्ती को जार में रखने से मोमबत्ती कुछ ही देर में बुझ जाती है; एक हरे पौधे को भी जलती मोमबत्ती के साथ जार में रखने से सूर्य के प्रकाश में मोमबत्ती बहुत अधिक समय तक जलती रहती है;

अगर एक चूहे को जलती मोमबत्ती के साथ रखने पर कुछ ही देर में मोमबत्ती बुझने के साथ ही साथ चूहा भी मर जाता है; परन्तु अगर यदि जार में चूहे के साथ एक हरा पौधा भी हो तो सूर्य के प्रकाश में मोमबत्ती बहुत अधिक समय तक जलती रहती है और चूहा भी जीवित रह पाता है।

आप जिस भी पौधे के बारे में यह आवश्यक रूप से जानना चाहते हैं कि वह रात में भी ऑक्सीजन (Oxygen) छोड़ते हैं, उनके साथ बिना चूहों के भी यह प्रयोग कर सकते हैं। मोमबत्ती बुझने का अर्थ प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया का न हो पाना है।

प्रकाश की उचित मात्रा और उचित लम्बाई वाली तरंगदैर्ध्यों (wavelengths) की उपलब्धि, हवा में कार्बनडाइऑक्साइड की कुछ मात्रा में उपस्थिति, तथा पादपों में पर्याप्त जल की आपूर्ति, यह तीनों घटक पादपों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) कर ऑक्सीजन निर्माण की प्रक्रिया के लिए अतिआवश्यक हैं। PHOTOSYNTHESIS MEANING

पादप को ऑक्सीजन बनाने के लिए हवा से कार्बनडाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं, तथा प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया से इसे अपने पोषण के लिए शर्करा में परिवर्तित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। यह भी ध्यान रहे कि हमारे ही समान श्वसन क्रिया द्वारा सभी पादप इस शर्करा का अपेक्षाकृत धीमी गति से ऑक्सीकरण कर अपने लिए आवश्यक उर्जा भी बनाते हैं।

इस प्रक्रिया में वे कार्बनडाइऑक्साइड बनाते भी हैं। पादपों को हरा रंग देने वाले क्लोरोफिल की उपस्थिति में पानी और कार्बनडाइऑक्साइड की प्रक्रिया से शर्करा (मुख्यतः ग्लूकोज) तथा ऑक्सीजन बनती है। इस शर्करा के उपापचय से पादप बढते हैं।

ऑक्सीजन बनाने के लिए प्रकाश-संश्लेषण सूर्य के प्राकृतिक प्रकाश में ही सम्भव हो पाता है। सामान्य रूप से ४०० से ७०० नैनोमीटर की तरंगदैर्ध्यों वाले प्रकाश की लाल तथा नीली तरंगों के अवशोषण से पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक उर्जा पाते हैं।

कृत्रिम प्रकाश, अथवा चन्द्रमा के प्रकाश में इस प्रक्रिया की कार्य-निष्पत्ति बहुत ही कम है, तथा पौधे ऐसी स्थिति में अपने लिए आवश्यक उर्जा प्राप्ति के लिए जितनी कार्बनडाइऑक्साइड बनाते हैं, उसकी तुलना में प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) से निर्मित ऑक्सीजन (Oxygen) की मात्रा बहुत ही अल्प होती है। PHOTOSYNTHESIS MEANING

प्रकाश-संश्लेषण की दक्षता के लिए अनुमान है कि सामान्य रूप से ७०००-७५०० लूमेन प्रति वर्ग-फुट की क्षमता वाला प्रकाश स्रोत आवश्यक है। मध्यम दक्षता के लिए अनुमानतः ५००० लूमेन प्रति वर्ग फुट की क्षमता आकलन की गई है।

न्यूनतम प्रकाश की मात्रा २००० लूमेन प्रति वर्ग फुट तो होनी ही चाहिए। इसके लिए प्रकाश स्रोत से उत्सर्जित तरंगदैर्ध्यों को प्राकृतिक सूर्य के प्रकाश के समरूप होना भी अति आवश्यक है।

सौ वाट के परम्परागत लाइट बल्ब का प्रकाश, अथवा सत्तर वाट के हैलोजन लैम्प (halogen lamp) अथवा बीस वाट के सीएफएल (CFL) , अथवा अठारह वाट के एलईडी बल्ब का प्रकाश लगभग १३०० लूमेन ही होता है। जो प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के लिए पर्याप्त नहीं है।

वर्तमान में एलईडी के कृत्रिम प्रकाश को प्रकाश-संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन निर्माण के लिए पर्याप्त दक्षता देने योग्य बना लिया गया है। अतः ऐसे वातावरण में सैद्धान्तिक रूप से पादप चौबीसों घण्टे प्रकाश-संश्लेषण कर ऑक्सीजन बना सकते हैं। किन्तु क्या वास्तव में ऐसा सम्भव हो पाता है?

इसके लिए हम आर्कटिक क्षेत्र में मिलने वाली वनस्पतियों के अध्ययन से अनुमान कर सकते हैं। आर्कटिक वृत्त (६६°३०” अक्षांश) से उत्तरी क्षेत्र में कुछ दिन ऐसे अवश्य आते हैं जब सूर्यास्त नहीं होता। इस क्षेत्र में कुछ आर्कटिक तैगा तथा बोरियल वनों का प्रसार है।

यह वन ५०॰ उत्तर से ७०” उत्तर अक्षांशों तक प्रसरित हैं। उत्तरी अमेरिका के बोरियल वनों में मुख्य रूप से स्प्रूस के वृक्ष ही होते हैं। वहीं यूरेशियाई तैगा में स्प्रूस, पाइन, बिर्च, तथा लार्च के वृक्ष होते हैं। इन वनों से उत्तर की ओर आर्कटिक तुन्द्रा का क्षेत्र है। जिसमें भी पौधों की सहस्रों प्रजातियाँ मिलती हैं। PHOTOSYNTHESIS MEANING

इनमें रेनडियर मौस (Reindeer moss), क्रोबेरी (Crowberry), हीथ (Heath), लीवरवॉर्ट (Liverwort), टुस्सॉक घास (Tussock grass), विलो (Willow), लिचन (Lichen), बौने वृक्ष विशेषकर बिर्च (birche), तथा चार सौ से अधिक प्रकार के पुष्पित होने वाले पादप।

सिद्धान्ततः, तुन्द्रा और तैगा की वनस्पतियाँ, ग्रीष्मकाल में जब अनेक दिनों सूर्य अनवरत चमकता है, तब प्रकाश-संश्लेषण
(Photosynthesis) कर चौबीसों घण्टे ऑक्सीजन बना सकती हैं।

इन प्रजातियों का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि यदि प्रकाश चौबीसों घण्टे उपलब्ध हो तब भी पादप चौबीसों घण्टे प्रकाश-संश्लेषण नहीं करते हैं। जिस प्रकार चौबीसों घण्टे जाग कर हमारी कार्यक्षमता घट जाती है।

उसी प्रकार पादप भी चौबीसों घण्टे अनवरत उसी क्षमता से प्रकाश-संश्लेषण नहीं कर पाते। इस क्रिया में पादप शर्कराओं का उत्पादन करते हैं, जिससे इनमें शर्कराओं का अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में संचय होता है।

शीतकाल में जब सूर्य की अनुपस्थिति में तापमान शून्य डिग्री सेंटीग्रेड से बहुत कम हो जाता है, तब शर्कराएँ अधिक सान्द्रता में होने से यह पादप पूरी तरह जमते नहीं और इनमें धीमी गति से उपापचय होता रहता है।

किन्तु, उनकी ग्रीष्मकालीन दैनिक गतिविधियों में प्रकाश संश्लेषण का समय तथा प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के द्वारा निर्मित शर्कराओं के उपापचय के धीमा होने तथा बढने के काल भी होते हैं। PHOTOSYNTHESIS MEANING

तुन्द्रा और तैगा की वनस्पतियों के अतिरिक्त अनेक वनस्पतियों पर प्रयोग करके यह पाया गया है कि यदि उन्हें चौबीसों घंटे प्रकाश में रखा जाए अथवा इक्कीस घण्टे, अधिक समय तक प्रकाश की उपलब्धता से अधिक मात्रा में ऑक्सीजन का निर्माण नहीं होता।

यह पाया गया है कि अधिकांश पादप १२ से १६ घण्टे अनुकूलतम (optimum) गति से प्रकाश-संश्लेषण कर ऑक्सीजन बना पाते हैं।

अतः यदि प्रकाश चौबीसों घण्टे उपलब्ध भी हो, पौधे हमेशा उतनी ऑक्सीजन नहीं बनाते, जितनी वे अवशोषित करते हैं।