उत्तराखंड राज्य के प्रतीक चिन्ह SYMBOLS OF UTTARAKHAND
1- राज्य चिन्ह –
उत्तराखंड का प्रमुख चिन्ह है उत्तराखंड के राज्य चिन्ह में तीन पर्वतों की एक श्रृंखला के ऊपर सम्राट अशोक की लाट को उकेरा गया है तथा उसके नीचे गंगा नदी की लहरों को दर्शाया गया है ।
यह चिन्ह उत्तराखंड राज्य के सभी कार्यालयों में प्रयुक्त किया जाता है
2- राज्य पशु-
कस्तूरी मृग हिमालयन(मस्क डियर) इसका वैज्ञानिक नाम ‘मास्कस लेउगकोगास्टर’ उत्तराखंड का राजकीय पशु घोषित किया गया है।
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कस्तूरी मृग एकांत में रहना पसंद करते हैं। यह बहुत शांत स्वभाव के जीव है। उत्तराखंड में यह केदारनाथ, फूलों की घाटी ,उत्तरकाशी,पिथौरागढ़ जनपद के लगभग 15000 फीट की ऊंचाई वाले जंगलों में पाया जाता है।
नर मृग की नाभि में कस्तूरी पैदा करने वाला एक अंग होता है।
3-राज्य पक्षी –
मोनाल (हिमालय का मयूर) मोनाल (लोफोफोरस इम्पीजेन्स) उत्तराखंड का राजकीय पक्षी घोषित किया गया है।
नेपाल में भी इस पक्षी को ही राष्ट्रीय पक्षी माना है मोनाल पक्षी का वैज्ञानिक नाम फीवेंट है। हिमाचल में इसे नीलगुरू व कश्मीर में इसे सुनाल के नाम से पुकारा जाता है।
स्थानीय लोग अपनी भाषा में इसे “मुन्याल” या “मुनाल” भी कहते हैं। मोनाल पक्षी का आकार 24 से 29 इंच होता है।इनका प्रजनन काल मई,जून में होता है।
यह साल में केवल एक ही बार अंडे देती है। यह अंडे किसी गड्ढे या पेड़ की जड़ में देती है।यह बहुत ही खुबसूरत पक्षी है।
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4- राज्य वृक्ष –
बुराँस उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुराँस(रोडोडेंड्रॉन आरबोरियम) है यहा मध्यम ऊंचाई का सदापणीँ वृक्ष है।
यह लगभग 1500 से 3500 मीटर की ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर पाया जाता है मार्च-अप्रैल में यह फूल खिलते हैं जिससे ऐसा लगता है कि पूरे जंगल को सजाया गया है इसे राज्य का सोना कहा जाता है जब यह खिलते हैं तो पूरे जंगल लाल दिखाई देते हैं।
स्थानीय लोग बुराँस के फूलों का रस निकालकर शरबत बनाने के प्रयोग में लाते हैं। बुराँस के फूलों का प्रयोग औषधियां बनाने में किया जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में पेयजल स्त्रोतों को लम्बे समय तक रखने में बुराँस के वृक्ष की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
इसके फूलों की चटनी भी ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पसंद की जाती है।
5- राज्य पुष्प –
ब्रह्मकमल हिमालय में लगातार बढ़ रही जनसंख्या के दबाव और संरक्षण के अभाव के चलते उत्तराखंड का राजकीय पुष्प ब्रह्मकमल (सोसुरिवा अबवेलेटा) विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया है।
इस पुष्प का का स्थानीय नाम कौलपद्य है। हिमालय में जितने भी पुष्प है ब्रह्म कमल को उनका सम्राट कहा जाता है यह पुष्प केवल रात्रि में ही खिलता है। ब्रह्मकमल को शुभ माना जाता है।
यह सिर्फ एक ऐसा फूल है जिसकी पूजा की जाती है परंतु इसे देवताओं में नहीं चढ़ाया जाता है।ऐसा माना जाता है कि स्वयं देवता इसमें वास करते हैं। भगवान ब्रह्मा के नाम पर इसका नाम ब्रह्मकमल पड़ा है और यह भी कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से ही सारी इच्छाएं पूरी होती हैं।
यह पुष्प अपनी विशेषताओं के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है इसकी झलक पाने के लिए लोग तरसते हैं क्या पुष्प रात में खिलता है और सुबह होते ही बंद हो जाता है।
ब्रह्मकमल के पौधे में साल में केवल एक बार ही पुष्प आते हैं। यह पुष्प औषधीय गुणों से भरपूर है इस पुष्प को कैंसर की दवा के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
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यह थकान उतारने वह पुरानी खांसी को ठीक करने में भी प्रयोग किया जाता है इस पोस्ट को अलग-अलग नामों से जाना जाता है उत्तराखंड में इसे ब्रह्मकमल के नाम से तथा हिमाचल में दूधाफूल व कश्मीर में गलगल व उत्तर-पश्चिम भारत में बरगनडटोगेस के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रह्मकमल बहुत ही सुंदर पुष्प है
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